मिर्गी या एपिलेप्सी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें व्यक्ति को आते हैं। मिर्गी के दौरे अचानक आते हैं और शरीर की कुछ हिस्सों को कंट्रोल नहीं करने देती। बचपन में मिर्गी का सामना करना, ना सिर्फ बच्चे को प्रभावित करता है, बल्कि उसके परिवार को भी चिंतित कर देता है।
सहज और संभव व्यावहारिक तरीके: बचपन में मिर्गी से बचाव के लिए, व्यक्ति को एक स्वस्थ जीवन शैली अपनाना जरूरी है। इसमें नियमित व्यायाम, प्रतिदिन की अच्छी नींद, और स्वस्थ आहार शामिल है।
दवाओं की नियंत्रण में: बचपन में मिर्गी के दवाओं का नियमित रूप से सेवन करना महत्वपूर्ण है। बच्चे को हमेशा दवाओं की नियमित डोज़ लेनी चाहिए और किसी भी बदलाव के बारे में उनके डॉक्टर से संवाद करना जरूरी है।
घरेलू सुरक्षा: बचपन में मिर्गी के रोगी को घरेलू सुरक्षा और समर्थन बहुत ज़रूरी है। परिवार के सदस्यों को मिर्गी के प्रकोप के समय क्या करना है और कैसे रोगी की मदद की जा सकती है, इसका ज्ञान होना अवश्यक है।
सामाजिक सहायता: परिवार के अलावा, सामाजिक संगठनों और सरकार की भी सहायता ली जा सकती है। ये संगठन मिर्गी से जूझ रहे परिवारों को सामाजिक, आर्थिक और मानसिक मदद प्रदान करते हैं।
शिक्षा का महत्व: बचपन में मिर्गी से पीड़ित बच्चों को उनके अधिकार के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। उन्हें उनके शारीरिक और मानसिक रूप से समर्थ बनाने के लिए समाज में जागरूकता बढ़ानी चाहिए।
जागरूकता का प्रसार: मिर्गी के बारे में समाज में जागरूकता का प्रसार होना अवश्यक है। स्कूलों में, समाज में और मीडिया के माध्यम से लोगों को मिर्गी के लक्षणों, उपचार और सामाजिक स्थिति के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
बहुत से बच्चे मिर्गी से बाहर आ जाते हैं और एक सामान्य जीवन जी सकते हैं। उपचार की नई तकनीकें और बेहतर दवाओं के विकास ने मिर्गी के मरीजों की जिंदगी और भी बेहतर बनाई है।
यदि आपको लगता है कि आपका बच्चा इससे प्रभावित है तो सहायता के लिए उचित चिकित्सक से सलाह लें।
डॉ नवीन तिवारी
परामर्श न्यूरोलॉजिस्ट।