मिर्गी की बीमारी का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में एक ऐसी अवस्था आ जाती है जिसमे मरीज को दौरे पड़ते है और वो बार बार बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ता है। उसका शरीर काबू के बाहर चला जाता है, जिससे वो अपना ब्लैडर कंट्रोल भी खो देता है। कभी कभी मिर्गी का मरीज अजीब तरह का व्यव्हार करने लगता है। कुछ समय बाद दौरा पड़ना रुक जाता है और इंसान वापस होश में आ जाता है। यह बीमारी किसी की जाती, समाज या आयु देख कर नहीं होती है, परन्तु यह ज़्यादातर बच्चो या 65 साल से ऊपर लोगो में ज़्यादा पायी जाती है।
एपिलेप्सी को हिंदी में मिर्गी या मिर्गी के दौरे के नाम से जाना जाता है। जब किसी व्यक्ति को मिर्गी का दौरा पड़ता है तो वह बहुत ही अलग तरह का व्यवहार करने लगता है और कई बार तो मिर्गी से पीड़ित व्यक्ति को याद भी नहीं रहता की उसे दौरा पड़ चूका है।
मिर्गी का दौरा पड़ने के समय हमारे दिमाग में नर्व सेल्स और न्यूरॉन्स के क्लस्टर में कभी-कभी अजीब व्यवहार, मस्सल स्पासंस, और कभी कभी बेहाश होना, इस प्रकार के असामान्य व्यवहार होते हैं। एपिलेप्सी या मिर्गी के दौरे के समय मनुष्य के मष्तिष्क की न्यूरोनल एक्टिविटी की सामान्य बनावट गड़बड़ा जाती है, परिणामस्वरूप उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है और उसकी नर्व सुन्न पड़ जाती हैं यहां तक कि उसे यह भी याद नहीं रहता की उसके साथ क्या हो चूका है।
मिर्गी संक्रामक रोग नहीं है और न ही यह कोई मानसिक बीमारी है। मिर्गी के होने के कारण तो अभी तक स्पष्ट नहीं है पर अधिकतर यह सिर पर चोट लगने की वजह से, कोई घाव या ट्यूमर आदि कारणों से हो सकती है, पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है की यह किसी के छूने या हवा के द्वारा फ़ैल जाये। कभी-कभी हाई इंटेंसिटी के दौरे मिर्गी के मरीज़ के दिमाग को नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन ज्यादातर दौरे मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव नहीं डालते हैं।
डायरेक्टर & कंसल्टिंग न्यूरोलोजिस्ट
एशियन न्यूरो सेंटर